श्री राम: शरणम् मम्

अहंकार को केवल ईश्वर ही मिटा सकता है - रामायणम् आश्रम - श्री धाम अयोध्या

आप दान के द्वारा लोभ को हरा सकते हैं, ब्रह्मचर्य के द्वारा काम को, और क्षमा के द्वारा असहिष्णुता और क्रोध को, और इसी प्रकार आप एक-एक पाप को एक-एक पुण्य से जीत सकते हैं, लेकिन एक अवगुण ऐसा है, जिसे हम किसी भी साधन से नहीं जीत सकते हैं, और वह है अहंकार | अगर दान देंगे, तो कहँगे कि मैंने दिया | यदि यज्ञ और पूजा करेंगे, तो कहेंगे कि मैंने किया | इसका अर्थ यह है कि सारे पाप तो नष्ट हो गए, पर यह “मैं! लगा ही रह गया है । तात्पर्य यह है कि व्यक्ति सारे पापों को तो हरा सकता है पर वह मैं को नहीं हरा सकता | रामायण के लंकाकाण्ड में एक पते की बात आती हैं । जब युद्ध चल रहा था, तब ल्रक्ष्मणजी सबसे लड़े, पर एक राक्षस ऐसा था, जिससे वे लड़ने नहीं गए | वह था कुंभकर्ण । इंहोने मेघनाद, रावण इन सबसे तो युद्ध किया, पर वे कुंभकर्ण के सामने नहीं गए । ल्रक्ष्मणजी इतने महान योद्धा होकर कुंभकर्ण के सामने जाने से क्‍यों डरते थे ? इसलिए कि कुंभकर्ण अहंकार का प्रतीक है | मानों जीवों के आचार्य लक्ष्मण जी कहते हैं कि भई, अहंकार से तो ईश्वर ही लड़ सकता है |

अहंकार को मिटाना ईश्वर के ही बस की बात है, जीव के बस की बात नहीं। जो हमारे बस की बात नहीं, वह हम क्‍यों करें ? कुंभकर्ण को अहंकार का प्रतीक माना गया है | यह अहंकार जितना सोया रहे, उतना ही संसार का कल्याण है | किसी ने तुल्सीदास जी से पूछ दिया-जागना अच्छा है या सोना ? वे बोले-अब कैसे बताएं कि जागना अच्छा है या सोना ? पहले यह बताओ कि किसे जागना है और किसे सोना ? यदि कोई कुंभकर्ण की तरह है, तो उसका सोना ही अच्छा है – अहंकार संसार में जितना सोता रहे, उतना ही संसार सुरक्षित रहेगा | जब रावण को ऐसा अनुभव होता है कि बंदरों के सामने हम हार रहे हैं, जब पुण्य के सामने पाप हारने ल्रगा, तो रावण अहंकार का आश्रय लेता है | वह जाकर अहंकार को जगा देता है |कुंभकर्ण ने जब रावण को देखा, तो पूछ दिया- भैया रावण तुम्हारा मुख क्‍यों सुख गया है ? रावण ने कहा कि लंका के आधी राक्षसोंका संहार हो गया, अब आधे बचे हैं | इसका अर्थ क्‍या है ? यही कि पुण्य के द्वारा जब आधा पाप मिटता है, तभी अहंकार जागता है | कुंभकर्ण जगा और जब युद्ध के लिए चलने लगा, तो रावण पूछ बैठा – तुम्हारे साथ कितनी सेना भैंजे ? वह बोला कि मैं किसी को लेकर नहीं जाता, मैं अकेले ही लड़ने जाऊंगा | और यह कितने पते की बात है । अन्य बुराइयाँ तो एक-दूसरे से मिलकर ही सफल होती हैं, पर अहंकार कहता है कि हम अकेले ही सबको हराने के लिए यथेष्ट है | सद्रुण सारे के सारे हों, पर यदि अकेला अहंकार आ जाए, तो वह सारे सद्गुणों को पीट देता है । कुंभकर्ण सारे बंदरों को उठा-उठाकर खाने लगता है | इसका अर्थ यह है कि मनुष्य के सारे पुण्यो को अहंकार खा जाता है ।

युग तुलसी पं. श्रीरामकिंकर

श्री हनुमत चरित्र/37

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